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बुधवार, 23 सितंबर 2015

आरक्षण – एक समीक्षा


आरक्षण – एक समीक्षा
23/09/2015, नई दिल्ली। आरक्षण समाज के पिछड़े वर्गों के लिये संविधान प्रदत अधिकार है। संविधान निर्माताओं ने समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिये ये प्रावधान किया था। लेकिन उनका मानना यह भी था कि ये लंबे समय के लिये नही होना चाहिए। इसके पीछे की शायद ये सोंच थी कि समाज के पिछड़े वर्गों को प्रोत्साहन और उत्थान के जरिये मुख्य धारा में शामिल करना। राजनीतिक लाभ के लिये समाज पर इसे आज तक थोप कर रखा गया है। लेकिन शायद यह अब बहुत जरूरी हो गया है कि वर्तमान व्यवस्था का मूल्यांकन किया जाये और इसे नये सिरे से परिभाषित किया जाये।
आइये आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था का अवलोकन किया जाये। देश में लगभग सभी क्षेत्रों में 49.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। उच्च शिक्षा संस्थान में दाखिले से नौकरी पाने तक में और बाद में पदोन्नति में भी आरक्षण का लाभ पिछड़े वर्ग को मिलता है। ये अलग बात है कि प्राथमिक शिक्षा हेतु स्कूल में दाखिले के लिये जातिगत आधार पर आरक्षण का प्रावधान नही है लेकिन आर्थिक आधार पर आरक्षण मौजूद है। पहली कक्षा में दाखिला लेने वाले 100 छात्रों में से मात्र 60 छात्र आठवी कक्षा तक पहुँच पाते हैं। समझने वाली बात ये है कि करीब 40 फीसदी छात्र सेकेंडरी स्तर पर पहुँच ही नही पाते तो आरक्षण का लाभ तो बचे 60 फीसदी में से जो आरक्षित श्रेणी के छात्र है वही उठा रहें है। उच्च शिक्षा में 40 फासदी तबका पहुँच ही नही पाया तो आरक्षण के लाभ वो उठायेगा कैसे? देश में उन बच्चों को स्कूल भेजने और उसके पढ़ाई के जारी रखने की व्यवस्था करने की जरूरत है। ये व्यवस्था तब संभव होगी जब हम बच्चों को पढ़ने की उम्र में काम करने से रोक पायेंगे। गरीबी रेखा के नीचे बसर करने वाले उन परिवारों को बच्चों के इसलिये काम करना पड़ता है क्योंकि परिवार को भरपेट भोजन उपलब्ध हो सके। इसका समाधान तब संभव है जब उन गरीब परिवारों को इस तरह के रोजगार उपलब्ध कराये जायें ताकि वो अपने सभी सदस्यों का पेट भर सकें। इस तरह से उन बच्चों को काम करने की जरूरत नही होगी और शायद वो स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रख सकेगें। जब वो प्राथमिक शिक्षा पूरी करेंगे तब जाकर वो इस आरक्षण का लाभ उठा पायेंगे। तो जरूरत इस बात की है कि बुनियाद शिक्षा में हो रहे इस ड्रॉप-आउट को रोका जाये ताकि वो तबका आरक्षण के इस सरकारी व्यवस्था का लाभ उठाने के लायक तो बने।

सोमवार, 21 सितंबर 2015

आरक्षण – समीक्षा की कितनी जरूरत

आरक्षण – समीक्षा की कितनी जरूरत
21/09/2015, नई दिल्ली। आज दक्षिणी दिल्ली के एक निजी अस्पताल में अपनी माता जी के इलाज के सिलसिले में गया था। वहां सुरक्षा इंतजाम में लगे एक प्रवासी बिहारी रमेश सिंह से मुलाकात हो गई। रमेश एक निजी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं और उनकी तैनाती उस अस्पताल में है। बातचीत के दौरान पता चला कि वो बिहार के एक राजपूत परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इस दौरान रमेश ने ये भी बताया कि वो बहुत हीं कम पैसों के लिये 12 घंटे की नौकरी करते हैं। सवाल ये है कि आखिर रमेश जैसे लोग बिहार से आकर कम पैसों में काम करने को मजबूर क्यों है? जवाब तो स्पष्ट है कि एक तो बिहार में अवसरों की कमी और दूसरी आरक्षण की समस्या उन्हे ऐसा करने पर मजबूर कर रही है।
इसी बीच रविवार को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि देश में आरक्षण नीति की समीक्षा की जानी चाहिये। उन्होने कहा कि अब इसका राजनीतिक उपयोग किया जा रहा है। आरक्षण की समीक्षा के लिये एक गैर राजनीतिक समूह का गठन किया जाना चाहिये जो यह तय करे कि किस आरक्षण की आवश्यकता है और कितने समय तक के लिये। इस पर बीजेपी के कई सांसदो ने विरोध में प्रतिक्रिया दी तो कांग्रेस ने भागवत के बयान का समर्थन किया। अन्य विपक्षी दलों ने इसपर कड़ा ऐतराज जताते हुए संघ प्रमुख की आलोचना की। संघ प्रमुख के इस वक्तव्य के आलोक में सवाल ये उठता है कि क्या वाकई में आरक्षण पर विचार की जरूरत है।
चलिये इस पर विचार करते हैं। आरक्षण लागू करते समय संविधान निर्माताओं ने इसे सीमित अवधि तक ही लागू करने की बात कही थी लेकिन राजनैतिक कारणों से इसका विस्तार होता रहा। हद तो तब हो गई जब 1991 में तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करते हुए अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण के दायरे में शामिल किया। इससे आरक्षण का प्रतिशत 50 से भी ज्यादा हो गया। यह फैसला कितना सही था इस पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे। फिलहाल हमें ये विचार करने की जरूरत है कि आखिर आरक्षण से किसका भला हुआ है? आजादी के 67 साल बाद परिस्थितियां और भयावह हो गई है। आरक्षण का प्रतिशत तो बढ़ गया लेकिन इसका फायदा गरीबों को पहले से कमतर मिल रहा है। शायद भारत दुनिया का इकलौता देश होगा जहाँ जातिगत आधार पर आरक्षण का लाभ दिया जाता है। इस तरह के आरक्षण का लाभ कुछ वर्ग विशेष तक सीमीत रह जाता है। हर जाति में कुछ ऐसे लोग है जो इसका लाभ अपने किसी जाति विशेष में पैदा होने के कारण लेते है जबकि उनकी स्थिति उस जाति के बहुसंख्यक लोगो से कहीं बेहतर होती है। जाति विशेष में जो आर्थिक तौर पर विपन्न लोग हैं वो इसका लाभ बहुत कम या नही के बराबर उठा पाते हैं जबकि उसी जाति के आर्थिक रूप से संपन्न या लोग इसका अधिकतम लाभ उठाते हैं। इस तरह से उस जाति में गरीबों की स्थिति जस की तस रह जाती है। विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या जाति विशेष में उन संपन्नों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिये? मेरा जवाब तो ना है। दूसरी परिस्थिति यह है कि जो आरक्षित जातियां नही है उनमें एक बड़ा तबका गरीबी से जूझ रहा है। राजपूत, ब्रह्मण, भूमिहार और कायस्थ जैसी जातियों में गरीबी तेजी से बढ़ी है। आबादी बढ़ने के साथ प्रतिव्यक्ति खेती की जोतने योग्य भूमि का कम होता जाना, नौकरियों में लगातार कम होते अवसर ने इस गरीबी को बढ़ावा दिया है। इन जातियों में गरीबी के कारण एक बड़ा तबका अपना भरण-पोषण करने में अपने को असमर्थ महसूस करता है। विडंबना ये है कि गरीब और असहाय होने के बावजूद उन्हें आरक्षण का लाभ नही मिलता क्योंकि वो अगड़ी जाति में पैदा हुए हैं। आर्थिक तौर पर पिछड़े होने के बावजूद सरकार की आरक्षण से जुड़ी योजनाओं का लाभ नही मिल पाता क्योंकि वो जाति विशेष में पैदा हुए है।

इन सब बातों से तो यही निकलकर आता है कि आज सरकार आरक्षण की जिस नीति को ढ़ो रही है उसकी समीक्षा की वाकई जरूरत है। जब देश की आबादी 125 करोड़ के पार पहुँच गई है और गरीबी के मिटने के कोई आसार नजर नही आते, ऐसे में हमें आँखे खोलकर देखने की जरूरत है ना कि आँखों पर पट्टी बांधे रखने की। सोचिये जरा.....                 

सोमवार, 31 अगस्त 2015

आरक्षण : जरुरत किसकी?

आरक्षण : जरुरत किसकी?
31/08/2015:नई दिल्ली। गुजरात से शुरू हुए पटेल समुदाय के आरक्षण आंदोलन ने लगभग पूरे देश को इसकी चपेट में ला दिया है। कल पाटीदार अनामत समिति के हार्दिक पटेल ने दिल्ली में कहा कि इस आंदोलन को देशव्यापी बनाया जाएगा और गुर्जर तथा कुर्मी समुदाय को भी इसमें शामिल किया जाएगा। आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में जाट समुदाय ने जाट आरक्षण बचाओ महारैली में आंदोलन करने और पूरे देश में चक्का जाम करने की धमकी दी है। जाट नेताओ ने कहा कि अगर पटेल उनके आंदोलन में साथ देंगे तो बदले में वे भी उनके आंदोलन में शामिल होंगे। इन सभी बातों से एक ही सवाल खड़ा होता है कि आखिर आरक्षण की जरुरत किसको है और है भी तो क्यों?
इस सवाल का हल ढूंढने के लिए हमें संविधान निर्माताओं के उस विचार को समझना होगा जिसकी वजह से उन्होंने आरक्षण देने का प्रावधान किया था। 30 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में श्री कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी ने डॉक्टर आम्बेडकर के सिर्फ बैकवर्ड क्लास को आरक्षण देने पर सवाल उठाते हुए कहा कि संविधान में कही भी इसे परिभाषित नहीं किया गया है। उन्होंने ये भी कहा की स्टेट ऑफ़ मुंबई ने इसे परिभाषित किया है जिसमे न सिर्फ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति बल्कि अन्य जातियों को भी इसमें शामिल किया गया है जो आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े है। इस बहस में उत्तर देते हुए डॉ आम्बेडकर ने कहा कि पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने का अधिकार राज्य सरकारों के ऊपर छोड़ देना चाहिए। पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने और आरक्षण देते समय हमें दो बातों को ध्यान में रखना होगा। पहला ये कि जिन समुदायों को हम आरक्षण देने जा रहे है क्या उनका सरकार और सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व अब तक नहीं हो पाया है? दूसरा ये की क्या उन्हें आरक्षण देने से सामान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन तो नहीं होगा। श्री एच एन कुंजरू ने इसे निश्चित समय सीमा(दस साल्) तक ही लागू करने का प्रावधान करने की सलाह दी।
इस बात से ये तो स्पष्ट है कि संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि आरक्षण का लाभ सिर्फ उनको मिलना चाहिए जिनका समुचित प्रतिनिधित्व अब तक नहीं हो पाया है। लेकिन वोट बैंक पॉलिटिक्स के चक्कर में 10 साल के इस आरक्षण को समय समय पर विस्तार दिया गया ताकि वो इसके सहारे के आदि हो जाये और उनकी ये आदत बनी रहे और वो कभी आत्मनिर्भर नहीं हो पाये। साल 1989 में जब जनता दल की सरकार बनी तो इसे और वीभत्स रूप दिया गया और आम्बेडकर के उपरोक्त विचारों को कुचल दिया गया। कांग्रेस से अलग हुए वी पी सिंह ने कांग्रेस की इस पालिसी को और ही खतरनाक रूप देते हुए समाज में विभाजन की एक गाढ़ी लकीर खींची जिसे आजतक समाज झेल रहा है। तत्कालीन सरकार के इस कदम का परिणाम ये हुआ कि पूरे देश में अगड़े और पिछड़े के नाम पर आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन से पूरे देश में सैकड़ों जाने गयी और आर्थिक नुकसान की तो बात न ही करे तो बेहतर होगा। 

आज जो लोग आरक्षण का लाभ ले रहे है तथा जो इसके लिए मांग या फिर आंदोलन कर रहे है उन्हें कुछ सवालों के जवाब खुद तलाशने की जरुरत है। पहला सवाल ये है कि क्या वाकई में उनके समाज का सरकार और सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया है? सवाल नंबर दो ये कि क्या उनके समाज को आरक्षण देने से कहीं ये सामाजिक ताना बाना (सोशल फैब्रिक) या कहें तो सामान अवसर के संवैधानिक वादे का अवसान तो नहीं हो जाएगा। अगर इन दोनों सवालों का जवाब अगर नहीं है तो उस समाज को आरक्षण की सख्त जरुरत है। यदि इन सवालों के जवाब हाँ में हुए तो फिर उन्हें अपने इस आरक्षण या इसकी मांग को छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की जरुरत है क्यूंकि आरक्षण का मूल उद्देश्य ही यही है। सोंचिये और तलाशिये इन दोनों सवालों के जवाब ………किसी और से नहीं बल्कि खुद से।         

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

आरक्षण - विचारणीय विषय(Reservation - An issue to consider)

आरक्षण - विचारणीय विषय

पूरा गुजरात आज पटेल समुदाय के लिए आरक्षण की मांग की आग में झुलस रहा है। गुजरात के अहमदाबाद, सूरत और मेहसाणा में कर्फ्यू लगा दिया गया है और 3 लोगों के मरने की भी खबर है। मंगलवार से जारी हिंसा में सरकारी सम्पति का नुक्सान सर्वाधिक हुआ है। कई शहरों में सरकारी दफ्तरों, बसों और सरकारी वाहनो और जनप्रतिनिधियों को निशाना बनाया जा रहा है। पूरे राज्य में 150 से अधिक गाड़ियोंजिनमें 70 से अधिक सरकारी बसें और कई पुलिस वाहन भी शामिल हैं, तथा कई सरकारी कार्यालयों को जला दिया गया। बसों में से 30 अहमदाबाद में तथा 25 सूरत में जलायी गयी। अहमदाबाद, सूरत और राजकोट में बीआरटीएस बस सेवा के जनमार्ग को भी व्यापक नुकसान पहुंचाया गया। भीड ने कई पुलिस चौकियों को भी जला दिया। कुछ स्थानों पर पुलिसकर्मियों को निशाना बनाया गया। अहमदाबाद में अकेले व्यापारियों और व्यवसायी समुदाय को तक़रीबन 3500 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति द्वारा चलाये जा रहे इस आंदोलन का नेतृत्व एक 22 वर्षीय नौजवान हार्दिक पटेल कर रहे है।

आधुनिक भारत के निर्माता सरदार पटेल को अपना आदर्श मानने वाले पटेल समुदाय गुजरात में सबसे समृद्ध समुदाय माना जाता है। गुजरात में कुल आबादी में करीब 20 फीसद तक पटेल समुदाय के लोग है। गुजरात की राजनीति में पटेल समुदाय के दबदबे का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के बीजेपी के 120 विधायक में से 40 विधायक इसी समुदाय से आते है। राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री समेत 5 मंत्री भी इसी समुदाय से आते है। फिर भी आज ये समुदाय आरक्षण मांग रहा है। ऐसा नही कि सारे पटेल समृद्ध है उनमें भी एक तबका ऐसा है जिन्हें वाकई में आरक्षण की जरुरत है। लेकिन हिंसात्मक आंदोलन के जरिए किसी भी समस्या का समाधान ढूंढ़ना नामुमकिन है।
आज पूरे देश में आरक्षण की मांग करने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि लोगो को लगने लगा है कि आरक्षण के जरिए वो आसानी से किसी बड़े संस्थान में दाखिल हो जायेंगे फिर पढ़-लिखकर अच्छी सरकारी नौकरी में आ जायेंगे। इसके दो पहलू है- एक तो ये कि उन्हें ना तो पढ़ने के लिए और ना ही नौकरी के लिये सामान्य वर्ग के छात्रों जितनी मेहनत करनी होगी और दूसरा ये कि आरक्षण के आधार पर सरकारी नौकरी मिलने में सामान्य वर्ग की तुलना में आसानी होगी जिसमें उन्हें काम कम करना पड़ेगा। लोगों की ये मानसिकता खासकर नई पीढ़ी की ये सोंच राष्ट्र के लिये घातक है। जहां भारत वैश्विक परिदृश्य में सबसे बड़े युवा श्रमशक्ति वाले देश के रूप में पहचान बना चुका है उस देश की युवा पीढ़ी की ये सोंच आत्मघाती साबित होगी।


आज जरूरत इस बात की है कि देश को जातिगत आरक्षण से अलग आर्थिक आधार पर आरक्षण के बारे में पहल करना चाहिए। जरूरतमंद हर जाति और धर्म में मौजूद है जो आर्थिक रूप से विपन्न है, जिन्हें आरक्षण की दरकार है, लेकिन वो इससे वंचित है सिर्फ इस आधार पर कि उसका जन्म किसी अगड़ी जाति में हुआ है। आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का मतलब ये होगा कि इसका लाभ सिर्फ जरूरतमंद को मिलेगा जो हर जाति और धर्म का होगा। कालक्रम में शायद सामाजिक विषमता जो हर ओर नजर आती है, से छुटकारा पाने में कारगर साबित होगा जो आरक्षण देने का मुख्य तर्क और आधार है।