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सोमवार, 28 सितंबर 2015

बिहार - किसकी सरकार?

बिहार - किसकी सरकार?
28/09/2015, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और मैदान में उतरे दो बड़े गठबंधन एनडीए और महागठबंधन दोनो ही सरकार बनाने का दावा कर रहें है। एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे पर वोट मांग रही है तो वहीं महागठबंधन बिहार में 10 साल तक सत्ता में रहे नीतीश कुमार के द्वारा किये गये विकास कार्य के आधार पर वोट मांग रहा है। सवाल ये है कि क्या सचमुच बिहार में विकास के नाम पर वोट डाले जायेंगे?
बिहार में इस चुनाव के जरिये 16 वी बार विधानसभा चुने जाने के लिये वोट डाले जायेंगे। अब तक 15 बार बिहार में विधानसभा के लिए मतदान हो चुका है। साल 2010 के चुनाव में जदयू के 20.46%, बीजेपी को 15.64%, राजद को 23.45%, लोजपा को 11.09% और कांग्रेस को 6.09% वोट मिले थे। इसके अलावा बसपा को 4.17% और निर्दलिय उम्मिदवारों को 8.76% वोट मिले थे। वर्तमान में बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटों में से 203 सीटें अनारक्षित, 38 सीटें अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिये है। 31 जुलाई 2015 के वोटरलिस्ट के मुताबिक इसबार के चुनाव में कुल 6,68,26,658 (6 करोड़ 68 लाख 26 हजार 658) मतदाता 62779 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। साल 2010 में हुए चुनाव में बिहार का राजनीतिक ध्रुविकरण अब से अलग था। क्या नई परिस्थितियों में तमाम पार्टीयों के वोट प्रतिशत ऐसे ही रहेंगे?
लॉ फैकल्टी, दिल्ली विश्वविद्यालय में मेरा पहला दिन था। जब मैं क्लास के बाद लॉन में बैठा अपने कुछ सहपाठियों से बातचीत कर रहा था तो परिचय के दौरान मेरी जाति जानने की उत्सुकता सबमें थी। मैं तब दिल्ली नया-नया आया था और इस बात से अनभिज्ञ था कि मेरी जाति ही यहां मेरी मित्र मंडली तय करेगी। खैर जातिवाद के भयावह चेहरे से यहां छात्रसंघ के चुनावों में सामना हुआ जब प्रवासी बिहारियों में भी जातिगत आधार पर उम्मीदवार चुने गये। वो तो छात्रसंघ के चुनाव थे लेकिन देश में जितने भी चुनाव होते हैं उनमें जातिवाद, धर्म और क्षेत्रवाद प्रमुख मुद्दे होते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में एक और मुद्दा जुड़ा और वो है विकास का। लेकिन बिहार में विकास के नाम पर वोट डाले जायेंगे ये  कहना बेमानी होगा। जहां से पूरे देश में सर्वाधिक पलायन होता है उस राज्य में भी जातिवाद समाज की गहराईयों में बसती है। बिहार में करीब अगड़ी जाति के 15% वोट है जिसमें करीब ब्राह्मण 5%, राजपूत 3%, भूमिहार 6% और कायस्थ 1% है। ओबीसी में 14.2% यादव, कुर्मी 4%, और करीब 3% वैश्य जाति का वोट है। अति पिछड़ी जाति के 30 प्रतिशत में कोयरी 8%, कुशवाहा 6% और तेली 3.2% शामिल है। दलित और महादलित मिलाकर 16% वोट है वहीं 16.9% मुसलमान वोटर है। पिछले विधानसभा चुनाव में कुर्मी, अतिपिछड़ा और महादलित वोट में से सबसे बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार की वजह से जदयू को मिले थे। अगड़ी जातियों के वोटों में से कुछ हिस्सा राजद, कुछ जदयू लेकिन सबसे ज्यादा बीजेपी को मिला था। परिस्थितियां इसबार बिल्कुल उलटी है। इसबार जीतनराम मांझी की वजह से महादलित वोट का एक बड़ा हिस्सा एनडीए के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। कुर्मी वोटों को छोड़कर पिछड़ा वर्ग का वैश्य समाज का वोट इसबार जदयू के हाथ से निकलता हुआ दिख रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में यादव वोटबैंक का बंटवारा हुआ था और राजद के अलावा एनडीए को भी यादव वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिला था। इसबार भी कमोबेश यही स्थिति दिख रही है। मुस्लिम वोट जो अब तक राजद के खाते में जाता था, इसबार हैदराबादी एमआईएम के आने से बंटती हुई नजर आ रही है। सीमांचल में ओवैसी द्वारा चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद राजद में घबराहट है। लालू यादव के दबाव में अनंत सिंह और सुनील पांडे को जदयू से निकालकर नीतीश कुमार भूमिहार वोट से हाथ धो बैठे है जिसके वजह से ये निश्चित रूप से बीजेपी को मिलने जा रही है। कायस्थ और वैश्य परंपरागत रूप से बीजेपी के वोटर रहें है और इस में कोई फर्क नही आया है। लोजपा की वजह से दलितवर्ग में खासकर पासवान  और रालोसपा की वजह से कुशवाहा वोट एनडीए की झोली में आते दिख रहें है। मतलब इसबार जदयू चुनावी गणित में बीजेपी नीत् एनडीए से पिछड़ती दिखाई दे रही है। लेकिन अंतिम परिणाम तो चुनाव बाद ही पता चलेगा।
कुछ भी हो इस बार बिहार में करीब 4.12 प्रतिशत यानी साढ़े सताईस लाख वोटर ऐसे हैं जो अपने मताधिकार का पहली बार प्रयोग करेंगे। करीब 10.5 प्रतिशत यानि 7012124 वोटर 18 से 25 साल की उम्र के हैं और यह समूह किसी भी पार्टी के लिये महत्वपूर्ण है। बिहार का युवा अगर यह ठान ले कि बिहार को बदलना है तो कोई ताकत उसे ऐसा करने से रोक नही सकती। बिहार के युवक और युवतियों जागो, बदलो अपनी किस्मत और बिहार को। 

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

बिहार चुनाव – परिदृश्य – 2

बिहार चुनाव – परिदृश्य – 2

15/09/2015, नई दिल्ली। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीखों के ऐलान से बिहार में चुनावी समर का श्रीगणेश हो गया है। पांच चरण में होने वाले मतदान से इस बार कई मायनो में नये इबारत गढ़े जायेंगे। अक्तूबर में 12,16 और 28 तारीख और नवंबर में 1 और 5 तारीख को मतदान होंगे। परिणाम 8 नवंबर को घोषित किये जायेंगे। निष्पक्ष चुनाव के लिये चुनाव आयोग ने पुख्ता इंतजाम किये है। केंद्रीय सुरक्षा बलों के तकरीबन 50,000 सुरक्षाकर्मी के उपर चुनाव को हिंसामुक्त रखने की विषम चुनौती है। इसबार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर प्रत्याशियों की तस्वीर भी लगी होगी। पेड न्यूज पर इसबार चुनाव आयोग की खास नज़र होगी और इस बावत निर्देश भी जारी कर दिये गये हैं। इसकी निगरानी के लिये जिला, राज्य और मुख्य निर्वाचन अधिकारी के स्तर पर मीडीया सर्टिफिकेशन एंड मॉनिटरिंग कमिटी का गठन किया गया है।

विकास के मुद्दे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ एनडीए बिहार में मैदान में है। वहीं नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन अपने 10 साल के कामकाज के आधार पर वोट मांग रही है। इस बार के चुनाव में पुराने खिलाड़ी नये राजनीतीक समीकरणों के साथ मैदान में है। लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में शामिल हुये लोक-जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) के साथ भारतीय जनता पार्टी मैदान में है। जातिय समीकरण के हिसाब से इस गठबंधन को और मजबूत करने के लिये एनडीए में जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) को शामिल किया गया है। मूसहर जाति के मांझी को अपने खेमे में शामिल कर एनडीए ये उम्मीद कर रही है कि महादलित वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा उसके साथ आ जायेगा। करीब साढ़े चार महीने पहले एकीकृत जनता परिवार (जिसमें मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी, नीतीश कुमार नीत जेडी-यू, लालू यादव की राजद, एच डी देवगौड़ा की जेडी-एस, ओम प्रकाश चौटाला की आईएनएलडी और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर की नेतृत्वविहीन समाजवादी जनता पार्टी सहित छह पार्टियों शामिल थी) की घोषणा कर एनडीए का मजबूत विकल्प तैयार करने की कवायद शुरू हुई लेकिन ज्यादा दूरी तय नही कर पायी। जनता परिवार से मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के अलग होने से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को वोट प्रतिशत के हिसाब से भले ही कोई नुकसान पहुँचता नही दिख रहा है लेकिन जनता के बीच एक स्पष्ट संदेश तो चला ही गया कि जनता परिवार और महागठबंधन में सब कुछ ठीक नही है। जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर महादलित के अपमान का आरोप झेल रहे नीतीश कुमार के लिये इस वोटबैंक की नाराजगी परेशानी का सबब बनी हुई है। ऐसा लगता है कि लालू यादव के राजनीती का आधार रहे मुस्लिम और यादव वोट बैंक भी उनसे दूरी बनाये हुये है। पिछले लोकसभा चुनाव में लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती की हार से ये स्पष्ट हो जाता है। एक सबसे बड़ा आरोप लालू यादव पर परिवारवाद का लग रहा है। इसके पीछे की वजह लालू यादव द्वारा अपने बेटे को उत्तराधिकारी के तौर पर पेश करना है। असदुद्दीन ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने का ऐलान इस गठबंधन के लिये खासी मुसीबत का सबब बन कर आयी है। हलांकि एमआईएम सिर्फ सीमांचल क्षेत्र में चुनाव लड़ेगी जहां मुस्लिम वोटरों की तादाद अच्छी-खासी है लेकिन महागठबंधन के सबसे मजबूत वोटबैंक का बंटवारा प्रतिद्वंदी एनडीए को फायदा हीं पहुँचायेगा इसमें कोई दो राय नही है। उधर एनडीए के एक और घटक दल शिवसेना ने भी अकेले चुनाव लडने का ऐलान किया है। बिहार में लगभग नगण्य शिवसेना से एनडीए को कोई नुकसान होगा इसकी संभावना नही है और महाराष्ट्र में बिहारियों का विरोध करने का श्रेय भी उनके खाते में है। सीट बंटवारे के मुद्दे पर अपमान के कारण महागठबंधन से अलग हुये शरद पवार की एनसीपी, राजद से निष्कासित पप्पू यादव और कई वाम दल मिलकर एक नये विपक्ष को गढ़ने की कोशिश में लगें है लेकिन इनकी विश्वसनियता बिहार की जनता के नजर में तो नही है। बहरहाल इन सबके किस्मत का फैसला बिहार की जनता करेगी। दीपावली में किसका बम जोर की आवाज करेगा और किसका फुस्स होगा ये तो समय ही बतायेगी।