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शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

ग्रेगोरियन कैलेंडर का इतिहास

ग्रेगोरियन कैलेंडर का इतिहास


ग्रेगोरियन कैलेंडर में पहले दस महीने होते थे...साल मार्च से शुरू होता था और दिसम्बर पर खत्म होता था। ज़्यादातर महीनों के नाम रोमन देवी देवताओं और राजाओं के नाम पर है।

1-मार्च (मार्स देवता पर);
2-अप्रैल (लैटिन भाषा के अनुसार 'दूसरे' नम्बर के लिये प्रयुक्त होने वाले शब्द के नाम पर);
3-मई (मेया देवी के नाम पर);
4- जून (जूनो देवी के नाम पर);
5- जुलाई (राजा जुलियस सीज़र के नाम पर, उससे पहले ये महीना "क्विंटिलिस" कहलाता था, जिसका मतलब है "पांचवां");
6- अगस्त (राजा ऑगस्टस सीज़र के नाम पर, इससे पहले इस महीने को भी 'सेक्सिटिलिया' यानी "छठा" कहा जाता था);

इसके बाद चारों महीनों के नाम उनके क्रमांक पर थे, यानी सप्तम से सेप्टेंबर, अष्टम से ऑक्टोबर, नवम से नवम्बर और दशम से दिसम्बर।

सूरज की गति के हिसाब से साल 365 दिन का ही होता था (लीप ईयर की गणना बहुत बाद में की गई), लेकिन दिसम्बर के बाद दो महीने रोमन आराम करते थे और ये आराम के दो महीने अनाम थे। 690 ईसा पूर्व में पोम्पिलियस ने सोचा कि आराम के महीने में मनाए जाने वाले उत्सव "फेब्रूआ" पर एक महीने का नाम रख दिया जाए और इस तरह मार्च से पहले आने वाले महीने का नाम फेब्रुवरी यानी फ़रवरी पड़ा। सबसे अंत मे जनवरी का नाम देवता जेनस के नाम पर रखा गया।
अब सवाल उठता है कि इस कैलेंडर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर क्यों है?
असल मे रोमनों का प्रभाव यूरोप पर सदियों तक रहा और इन्ही सदियों में रोमनों के कैलेंडर को ईसाइयों ने आत्मसात कर लिया था। लेकिन जनवरी को साल का पहला महीना मानने पर ईसाई दुनिया एकमत नही थी और इसका कारण ये था कि जनवरी का नाम रोमन देवता जेनस के नाम पर रखा गया था। जेनस जिसके दो मुह होते हैं और वो आदि को भी देखता है और अंत को भी, इसलिए रोमन कैलेंडर में वो पहला महीना था जो साल के आदि को भी देखता था और अंत को भी। ईसाई चाहते थे कि किसी ईसाई त्योहार से जुड़े महीने को साल का पहला महीना माना जाए लेकिन ऐसा हुआ नही।

एक सोलर ईयर 365 दिन और लगभग 6 घण्टों का होता है, रोमन कैलेंडर में 365 दिन के ऊपर के घण्टों की गणना शुद्ध नही थी, जिससे कुछ सदियों में दिसम्बर और जनवरी गर्मी में पड़ने लग जाते थे। ईसाई दुनिया मे ये चिंता पैदा हुई कि इस कैलेंडर के हिसाब से तो ईस्टर गर्मियों में पड़ने लगेगा। तब 1580 ईसवी में पोप ग्रेगरी ने गणना की इस त्रुटि को ठीक किया और तय किया कि पहला महीना जनवरी को ही माना जाए। पोप ग्रेगरी ने सोलर ईयर की ज़्यादा शुद्ध गणना की, इसलिए ये कैलेंडर उनके नाम से ग्रेगोरियन कैलेंडर कहलाने लगा।
बाद में ग्रेगोरियन कैलेंडर पर काम करने वाले इतालवी वैज्ञानिक अलॉयसियस लिलियस ने एक नई प्रणाली तैयार की, जिसके तहत ये तय किया हर साल केवल 365 दिनों का रखा, और हर चौथा वर्ष 366 दिनों के साथ एक लीप वर्ष होगा।
और जिस तरह रोमन कैलेंडर में साल का अतिरिक्त समय उनके यहां अतिरिक्त माने जाने वाले महीने फरवरी में डाल दिया जाता था, उसी तरह अलॉयसियस ने भी लीप ईयर का अतिरिक्त दिन फरवरी में एडजस्ट कर दिया !!