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मंगलवार, 10 नवंबर 2015

जात न पूछो बिहार की

जात न पूछो बिहार की
10 नवंबर 2015, नई दिल्ली। जिस बिहार विधानसभा चुनाव 2015 पर पूरे देश की नजर थी वो संपन्न हुआ जिसमें नितीश कुमार नीत् महागठबंधन विजयी रहा। यह चुनाव कई मायनो में ऐतिहासिक था और कई रिकार्ड इस चुनाव के परिणाम ने बनाये। महागठबंधन द्वारा घोषित मुख्यमंत्री नितीश कुमार पाँचवी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद ग्रहण करेंगे और ये एक कीर्तिमान है। इससे पहले बिहार में कभी कोई इतनी बार मुख्यमंत्री नही बना और इतने दिनों तक कोई इस पद पर रहा भी नही है। इस रिकार्ड तोड़ प्रर्दशन के लिए नितीश कुमार को बधाई और बिहार की जनता को भी बधाई।
(Courtsey: Election Commission of India)

शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

बिहार चुनाव – हार-जीत के मतलब

बिहार चुनाव – हार-जीत के मतलब 
03/10/2015, नई दिल्ली। जैसे-जैसे बिहार विधानसभा के मतदान की तारीख नजदीक आ रही है सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज होती जा रही है। इस जंग में सभी दल और सभी स्तर के नेता शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में बिहार भाजपा के सभी नेता अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ राजद प्रमुख लालू यादव, महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार के अलावा अन्य विपक्षी नेताओं का सामना करने में कोई कोर-कसर नही छोड़ रहे हैं। लग रहा है जैसे बिहार विधानसभा चुनाव में समुचा बिहार राज्य जंग का मैदान बन गया है और कहावत के मुताबिक सबकुछ जायज है इस जंग के मैदान में।
           

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

बिहार का मुख्यमंत्री कौन?

बिहार का मुख्यमंत्री कौन?
25/09/2015, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। पूरे देश की नजर इस चुनाव पर नजर है। इस चुनाव में सत्ता और विपक्ष दोनो के लिये करो या मरो की स्थिति है। केंद्र में सत्ता पर काबिज बीजेपी नीत एनडीए बिहार में अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में है। एनडीए के सामने बिहार में पिछले 10 सालों से कुर्सी संभाल रहे नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन जोरआजमाइश के लिये तैयार खड़ी है। महागठबंधन में जदयू, राजद और कांग्रेस ने नीतीश कुमार को पहले से मुख्यमंत्री के तौर पर अपना उम्मीदवार घोषित किया है। एनडीए ने अभी तक किसी को मुख्यमंत्री के तौर पर अपना उम्मीदवार नही बनाया है। एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बना कर मैदान में उतरने का फैसला किया है। वैसे तो एनडीए में कई संभावित उम्मीदवार हैं लेकिन मुख्यमंत्री बनने की संभावना बीजेपी के ही किसी सदस्य की है। सहयोगी दलों में भी कई नेताओं ने बिहार की सत्ता के लिये मंसूबे पाल रखे है, लेकिन एनडीए के सबसे बड़े घटक बीजेपी ऐसा होने देगी इसकी संभावना नही के बराबर है। लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान कई बार इस आशय की चर्चा परोक्ष रूप से की है लेकिन उन्ही के पुत्र चिराग पासवान भी इस पर अपनी दावेदारी काफी पहले जता चुके है। ये अलग बात है कि चुनाव की घोषणा के बाद से लोजपा प्रमुख या उनके पुत्र ने इस संदर्भ में अपना मुँह नही खोला है। एक और घटक राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा है लेकिन किसी भी तरफ से समर्थन ना मिलने से वो अपना मन मसोस कर रह गये। जदयू छोड़कर एनडीए में नये-नवेले शामिल और महादलित नेता जीतनराम मांझी तो शायद इसी मंसूबे के साथ एनडीए में आये ही थे लेकिन यहां आने के बाद समझ में आया कि ये कुर्सी इतनी आसानी से नही मिलने वाली। उनके लिये दूसरा कोई उपाय होता तो शायद वो निकल भी जाते लेकिन बाकी दरवाजे तो वो खुद बंद कर आये थे। बीजेपी में पहला नाम सुशील मोदी का आता है लेकिन उनकी संभावना नही के बराबर है। वजह तो कई है मसलन जातिवाद का आरोप, साफ-सुथरी छवि का ना होना और सबसे बड़ी बात वर्तमान नेतृत्व को नापसंद होना है। इस नापसंदगी की वजह तो कई वर्ष पुरानी है क्योंकि जब गुजरात तत्कालीन के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा चली तो बिहार के मुख्यमंत्री के पक्ष में और गुजरात के मुख्यमंत्री के विरोध में सबसे मुखर रहने के गौरव उन्हे प्राप्त है। दूसरा नाम वर्तमान कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का है। लेकिन मंत्रालय में उनके वर्तमान प्रदर्शन पर प्रधानमंत्री कार्यालय की नाराजगी उन्हे इस कुर्सी से दूर कर देता है। प्याज और दाल की कीमत कृषि मंत्री को बिहार की कुर्सी से चुकानी होगी। तीसरा नाम संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद का है लेकिन उनकी स्थिति लचर है। वर्तमान बीजेपी नेतृत्व को पता है कि वो सबके साथी है और किसी के भी साथी नही है। हर बार शीर्ष नेतृत्व के करीब हो जाना महज संयोग नही हो सकता चाहे शीर्ष पर कोई भी हो। इसके अलावा एक नाम और उभर कर आता है वो है पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकिशोर यादव का है। साफ-सुथरी छवि, मेहनती और ईमानदार होना और संगठानात्मक और प्रशासकीय अनुभव उन्हे इस लायक बनाता है। बाकि संगठन और नेतृत्व की तरफ से कोई और नाम आ जाये तो कोई आश्यर्य नही होगा क्योंकि बीजेपी की वर्तमान अवस्था इसके लिये अनुकूल है।

महागठबंधन की ओर से वर्तमान परिस्थिति में नीतीश कुमार तो मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार हैं लेकिन परिस्थितियां तब बदल सकती है जब सहयोगी राजद को जदयू से ज्यादा सीटें हासिल हो जाये। चारा घोटाले में सजा होने के बाद राजद प्रमुख ना तो चुनाव लड़ सकते और ना तो किसी संवैधानिक पद पर बैठ सकते। इसलिये अपने दोनो बेटों को चुनाव मैदान में उतार कर अपनी राजनीतिक विरासत का उतराधिकारी उन्हे बना दिया है। इसे आगे बढ़ाने के लिये वो सत्ता की चाभी अपने पास ही रख कर नीतीश कुमार पर हमेशा दबाव बनाये रखना चाहेंगे। नीतीश और महागठबंधन इस दबाव को कितना झेल पायेगा ये तो समय तय करेगा। विधानसभा चुनावों में अब बहुत कम समय बचा है और उम्मीद है कि राज्य की जनता ने तय कर लिया होगा कि बिहार का सिरमौर किसे बनाना है। अब किसके सिर पर ताज सजेगा ये तो 8 नवंबर को ही पता चलेगा।     

शनिवार, 19 सितंबर 2015

टिकट बंटवारे पर घमासान

टिकट बंटवारे पर घमासान
19/09/2015, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा 2015 की चुनावी प्रक्रिया अब आगे बढ़ चुकी है। पहले दौर के मतदान की नोटिफिकेशन जारी हो जाने के बाद लगभग सभी दलों द्वारा उम्मीदवारों के घोषणा शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही संभावित उम्मीदवारों और टिकटार्थियों में संतोष-असंतोष का दौरा पड़ना शुरू हो चला है। एनडीए में बीजेपी ने पहले दौर में 43 उम्मीदवारों की सूची जारी करते हुये 3 विधायको का टिकट काटा। पहले चरण के लिये 19, दूसरे चरण के लिये 15 और अन्य चरणों के लिये 9 उम्मीदवारों की घोषणा बीजेपी द्वारा की जा चुकी है। इस सूची के जारी होने के बाद सहयोगी रालोसपा ने अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर किया। रालेसपा काराकट विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी द्वारा अपने उम्मीदवार उतारने की वजह से नाराज है। जिन तीन विधायको का टिकट बीजेपी ने काटा है उनमें कटोरिया विधानसभा सीट प्रमुख  है जो अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित है। बीजेपी की पहली लिस्ट में 26 वर्तमान विधायकों को टिकट देने के साथ जातिय समीकरण का भी खास ख्याल रखा गया है। 5 यादवों को टिकट देते हुये 60 फीसदी से ज्यादा सीटों पर एससी और पिछड़े वर्ग को उतारा गया है। आधी सीटों पर युवाओं और महिलाओं को टिकट दिया गया है। वहीं लोकजन शक्ति पार्टी द्वारा अब तक 40 में से 12 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की गई जिसमें तीन उम्मीदवार पार्टी मुखिया रामविलास पासवान के पारिवारिक सदस्य है। लोजपा ने इस सूची में अपने अल्पसंख्यक चेहरे महबूब अली क़ैसर के बेटे को उनके पारिवारिक गढ़ सिमरीबख्तियारपुर से टिकट उतारा है। लोजपा के इस लिस्ट के जारी होते ही पार्टी में बगावत हुई और पार्टी के वैशाली सीट से सांसद रामकिशोर सिंह उर्फ रामा सिंह ने पार्टी के सभी पदों से इस्तिफा दे दिया। वहीं एक और लोजपा नेता राजद प्रमुख से मिलने पहुँच गये। एनडीए के सबसे नये सदस्य हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने अपने 20 सीटों में से 13 पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। हम के मुखिया जीतनराम मांझी ने अपने पुत्र समेत सभी बागी जद-यू विधायकों को टिकट देने की घोषणा की है जो उनके साथ पार्टी छोड़ कर आये थे। इसके अलावा सीट बंटवारा पर हुए समझौते के मुताबिक हम ने अपने 5 उम्मादवारों, जो बीजेपी के चुनावचिन्ह पर लड़ेंगे, के नाम बीजेपी नेतृत्व को सौंप दिया है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के बेटे और पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के दो बेटों के नाम शामिल है।  रालोसपा ने अब तक 5 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है। महा गठबंधन में सीटों का बंटवारा हो चुका है और जेडी-यू 101 सीटों पर, राजद 101 साटों पर और कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जदयू में सीटों की घोषणा से पहले हीं बगावत का दौर शुरू हो चला है। राघोपुर से जदयू के वर्तमान विधायक सतीश कुमार भाजपा में शामिल हो गये हैं। वहीं महागठबंधन ने आज शाम अपने घटकों के बीच सीटों के बंटवारे की घोषणा के साथ ये स्पष्ट कर दिया कि कौन सी सीट पर कौन सी पार्टी चुनाव लड़ेगी। इस बंटवारे के तहत जदयू बगहा, नौतन, चनपटिया, सिंहेश्वर, जोगीहाट, पूर्वी चंपारण, मधुवन, शिवहर, बाबू बरही, फूलपरास, निर्मली, सुपौल, त्रिवेणीगंज, राजीगंज, आलमनगर, लालगंज, वैशाली, आदि सीटों पर लड़ेगी। वहीं राजद लौरिया, रक्सौल, मोतीहारी, छाता, बनियार, सुरसन,सीतामढी मधुबनी, झंझारपुर, पिपरा, छातापुर, रून्नी सैदपुर, फारिबसगंज,बरारी, सहरसा, सिमरी बिख्तयारपुर आदि सीटों पर लड़ेगी। कांग्रेस के खाते में बाल्मिकीनगर, राजनगर, नरिकटयागंज, बेतिया, दीघा, बथनाहा, सीधी, बेनीपट्टी, अररिया, बहादुरगंज, किशनगंज, मौर, कटिहार, मनिहारी, गोरहा आदि सीटें आयी है। महागठबंधन के तरफ से कहा गया है कि घटक दल उम्मीदवारों के नामों की घोषणा जल्द करेंगे। जैसे-जैसे उम्मादवारों की लिस्ट जारी हो रही है चुनावी पारा तेजी से चढ़ रहा है और लगभग सभी दलों को बगावत से दो-चार होना पड़ रहा है। ऐसे में अब ये देखना है कि बिहार विधान सभा चुनाव का परिणाम किसे सही साबित करता है।