मंगलवार, 19 जनवरी 2016

छात्र राजनीति के बहाने

छात्र राजनीति के बहाने
नई दिल्ली, 19 जनवरी 2016। भारत के दक्षिणी शहर हैदराबाद में एक पीएचडी छात्र रोहित वेमुला द्वारा पिछले रविवार रात आत्महत्या किए जाने के मामले ने भारतीय राजनीती के माहौल को गर्म कर दिया है। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का यह छात्र दलित समुदाय से आता था और शायद इस गर्माहट की वजह भी यही है। आंबेडकर स्टूडेंट्स असोसिएशन और तेलंगाना एसएफआई जैसे वामपंथी छात्रसंगठनो द्वारा विश्वविद्यालय कैंपस में किस ऑफ लव, बीफ फेस्टीवल और मेमोरियल ऑफ याकूब मेमन जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहें थे जिसका विरोध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) कर रही थी। इस सिलसिले में विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था। सबसे हालिया मामले में बवाल तब शुरू हुआ जब 1993 मुंबई सीरीयल ब्लास्ट केस के दोषी याकूब मेमन को फांसी दी गईएसएफआई जैसे वामपंथी छात्रसंगठनो द्वारा इस फांसी के विरोध में विश्वविद्यालय में मुजफ्फरनगर बाकी है की स्क्रीनींग कराने की तैयारी की।
साथ ही याकूब के लिए अंतिम संस्कार प्रार्थना भी आयोजित की गई। एबीवीपी ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि रोहित वेमुला सहित पांच स्टूडेंट्स के खिलाफ भी विश्वविद्यालय प्रशासन से शिकायत की विश्वविद्यालय ने प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा जांच के बाद पांच छात्रो को छात्रावास से निलंबित कर दिया और गैर-शैक्षिक क्रिया-कलाप में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन उन्हें निष्कासित नही किया। 07 जनवरी को डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर द्वारा जारी एक अपील में इस बात की पुष्टी की गई और ये जानकारी भी दी गई कि निलंबित छात्रों को छात्रवृति मिलती रहेगी। निलंबित छात्रों ने माननीय उच्च न्यायालय में अपने निलंबन के आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका भी दायर की थी जिसकी सुनवाई 19 जनवरी 2016 को निर्धारित की गई थी। रोहित द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है।
रोहित ने आत्महत्या क्यों की ये तो जांच का विषय है और भारत की कानून व्यवस्था इसके लिए सक्षम भी है लेकिन सवाल ये उठता है कि विश्वविद्यालय का राजनीतिकरण कहां तक उचित है। भारत का संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार देता है लेकिन कुछ शर्तों के साथ। अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करते समय पर नागरिक को यह ध्यान में रखना चाहिए कि इससे जुड़े हर पहलू को ध्यान में रखा जाए। दूसरी बात ये है कि किसी भी विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति के लिए सीमित व्यवस्था होनी चाहिए ना कि असीमित जिससे पढ़ाई पीछे छूट जाए और राजनीति हावी हो जाए। तीसरी बात है कि किसी भी राष्ट्रविरोधी तत्व या आतंकवादी के समर्थन में किसी भी व्यक्ति को नही खड़ा होना चाहिए क्योंकि ये संदेह उत्पन्न करता है। तेलंगाना के निर्माण के पहले से ही राज्य के कई विश्वविद्यालय राजनीति का अखाड़ा बन गए हैं। विभाजनकारी तत्व इस बात का फायदा उठाकर छात्रों को बरगला रहें हैं और छात्र उनके विनाशकारी नीति का हिस्सा बनकर कुत्सित राजनीति के शिकार हो हैं। आतंकी याकूब मेमन के फांसी का विरोध और उसके लिए प्रार्थना सभा का आयोजन इस कुत्सित राजनीति का हिस्सा था जिसका विरोध किया जाना चाहिए था। लेकिन हमारी राजनीति में इतनी सड़न आ गई है कि राजनीतिज्ञ निहित स्वार्थ के लिए किसी को भी अपना हथियार और माध्यम बना लेते है और शिकार होने वाले को ना तो समझ आती है ना ही पता चलता है। उससे भी बुरा तब होता है कि जब कांग्रेस, आआप जैसे विभिन्न राजनैतिक दल ऐसी परिस्थिति में भी अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना शुरू कर देतें है। आज जरूरत इस बात की है कि विश्वविद्यालयों में राजनीति के दखल को न्यूनतम किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ीयां इस कुटिल राजनीति का शिकार ना हो जायें। भगवान रोहित वेमुला की आत्मा को शांति दे।   

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